दोस्तों, आज कठोपनिषद के कुछ श्लोकों को देख रहा था!चलिए,आज इसीपर बात करते हैं।
एक बात है! जब पूरे विश्व में सभ्यता का नामोनिशान नहीं था, उस समय भी भारतभूमि में वेद और उपनिषदों का प्रचार था! उन्नति की चरम सीमा पर पहुंचा मानव मष्तिष्क ही वेद और उपनिषद में वर्णित विषयों को सोच सकता है।सोचिए, उनको रचनेवाले और हजारों पीढ़ियों तक उनको कंठस्थ करके सहेजनेवाले कैसे कमाल के लोग रहे होंगे! है न!!!
मित्रों, मरते दम तक गर्व करो कि हम उस महान परंपरा के वंशज हैं! गर्व करो कि हम उसी धरती पर रहते हैं जिसपर कभी वो महापुरुष भी रहते थे, चलते थे और बोलते थे। उन्हीं की वजह से कभी हम विश्वगुरू भी कहे जाते थे!
दोस्तों, अब भावुकता को छोड़ते हैं। आइये वापस कठोपनिषद पर!
कठोपनिषद कमाल का ग्रंथ है! यह कृष्ण यजुर्वेद का एक भाग है। इसमें दो अध्याय हैं। ये अध्याय वल्लियों में बटें हुए हैं। प्रथम अध्याय में 71 और द्वितीय में 48 मतलब 119 कुल मंत्र हैं।
इसकी रचना महान ऋषि कठ ने की। उनके नाम पर ही इस ग्रंथ का नाम रखा गया।
अब जानते हैं कि कठोपनिषद में क्या कहा गया है। इसमें नचिकेता और मृत्यु के देवता यमराज के संवाद का वर्णन है।
नचिकेता के पिता आरुणि उद्दालक ऋषि थे। उन्होंने एक बार विश्वजित नामक बहुत बड़ा यज्ञ किया। विद्वानों को दान करने का संकल्प लिया। उस समय प्रचलन था कि विद्वानों को दान के तौर पर गाय दी जाती थी। उद्दालक ने भी बहुत सारी गाएं एकत्र की थीं जिन्हें यज्ञ में आये हुए विद्वानों को दिया जाना था।
यज्ञ बड़े अच्छे से हो गया। नचिकेता ने इसमें बड़ी कड़ी मेहनत की। लेकिन उसने एक चीज़ नोटिस की! विद्वानों को वह गायें दान में दी जा रही थीं जो बूढ़ी, बीमार एवं अशक्त थीं। जो गायें दान के लिए खरीदी गयीं थीं, उन्हें दान में दिया ही नहीं जा रहा था!
नचिकेता अपने पिता के पास गया। पिता ने सुनकर भी अनसुना कर दिया। नचिकेता ने उन्हें शास्त्र का वह विधान याद दिलाया जिसके तहत उत्तम और अच्छी वस्तुओं का ही दान किया जा सकता था।
बाप- बेटे में बहस थोड़ी तेज हो गयी! नचिकेता ने यहां तक कह डाला कि अगर वह गायों को दान में नहीं देना चाहते तो अपने पुत्र नचिकेता को ही दान कर दें।क्रोध की अधिकता में पिता कह बैठे- जा, मैंने तुझे मृत्यु को दिया।
अब कहानी यहां से एक नया रूप धारण कर लेती है। नचिकेता पहुँच जाते हैं सीधे यमराज के यहां। वहां उनसे मिलने हेतु तीन दिनों तक भूखे प्यासे प्रतीक्षा की! वापस भगाने के लिए यमदूतों ने बहुत प्रयास किये, पर नचिकेता वहाँ से नहीं हिले।
जब यमराज वापस आये तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ! लोग तो मौत के नाम से ही कांप जाते हैं! फिर यह युवक सीधा मृत्यु के मुख में क्यों आया है?
यमराज नचिकेता का साहस देखकर बड़े प्रभावित हुए। वह नचिकेता की बुद्धि, विचारों, वाणी और ज्ञान से प्रसन्न हो गए। वरदान के रूप में धन, सम्मान,राजपाट देना चाहा! लेकिन नचिकेता ने विनम्रता से मना कर दिया!
यमराज ने भी तय कर रखा था कि वे इस विलक्षण युवक को खाली हाथ नहीं लौटाएंगे। उन्होंने नचिकेता को फिर से तीन वरदान मांगने को कहा।
नचिकेता ने मौके का फायदा उठाया!पहला वरदान ये मांगा कि उनके पिता सारी उम्र सुख शांति से रहें तथा उनसे खूब प्रेम करें। उन्होंने दूसरे एवं तीसरे वरदान के रूप में यमराज से वह ज्ञान लिया जिसका फायदा हर मानव उठा सकता है!
दूसरे वरदान के तौर पर नचिकेता ने स्वर्ग को प्राप्त करानेवाली यज्ञविद्या का ज्ञान मांगा।
आइये, थोड़ा समझें कि यज्ञ क्या है। यज्ञ आदान- प्रदान की एक क्रिया है।जो कुछ हम अपने वातावरण से लेते और देते हैं, वह यज्ञ ही है। प्रकृति के साथ पूर्ण सामंजस्य में रहना और प्राकृतिक सम्पदाओं जैसे अच्छी वर्षा, फसल, शुद्ध वायु, जल आदि की प्राप्ति इसका उद्देश्य है।
अब एक रहस्य की बात! इस यज्ञ को एक माध्यम के द्वारा ही किया जा सकता है! क्यों? क्योकि यह आदान प्रदान की क्रिया है।
दोस्तों, अग्नि को आदिकाल से ही मानव और प्रकृति के बीच का माध्यम माना गया है। आप अग्नि में जो भी समर्पित करते हैं, वह प्रकृति में विलीन हो जाता है। यज्ञ में अग्नि के सान्निध्य में ही सभी कार्य होते हैं।
यमराज ने नचिकेता को इसी अग्नि का रहस्य बताया तथा ये आशीर्वाद दिया कि यज्ञ में मौजूद रहनेवाली अग्नि नचिकेताग्नि के नाम से जानी जाएगी।
मित्रों, नचिकेताग्नि के बारे में विस्तार से लिखना यहां संभव नहीं है। लेकिन मैं आपको एक hint जरूर दूंगा। बहुत सरल है। आप थोड़ा ध्यान दीजिए! आपने कई तरह की अग्नियों को देखा होगा। रसोई गैस से जलने वाली अग्नि!मोमबत्ती से जलने वाली अग्नि! चिता की अग्नि! माचिस की तीली से उत्त्पन्न होने वाली अग्नि। और भी अनेक प्रकार की अग्नियां आपने देखी होंगीं।
ध्यान दीजिए। ऊपर से देखने पर आपको हर तरह की अग्नि एक ही नजर आएगी! लेकिन सूक्ष्मता से देखें तो ये अग्नियां अलग अलग हैं। जिसे नचिकेताग्नि का ज्ञान हो, वही यज्ञ में उसे उत्पन्न कर सकता है और इसे सफल बना सकता है। इसे उत्पन्न करने का एक निश्चित विधान है! यही विधान यमराज ने नचिकेता को बताया और नचिकेता जी हमलोगों को बताते आ रहे हैं!
तीसरे वरदान में नचिकेता तमाम हदें पार कर गए! यमराज से मृत्यु के बाद जीवों की क्या गति होती है, इसका ज्ञान मांगा! सीधे शब्दों में कहें तो उन्होनें वह ज्ञान मांग लिया जिसे जानने के बाद व्यक्ति मृत्यु के भय से ही मुक्त हो जाता है।
यमराज ने बड़ी आनाकानी की! अगर वो ये सीक्रेट बता देते, तो फिर उनसे डरता ही कौन!!!
नचिकेता भी कहाँ छोड़नेवाले थे! उन्होंने ज्ञान ले ही लिया! उन्होंने जो सीखा, सब कठोपनिषद में मौजूद है। यमराज ने उन्हें बताया कि मृत्यु से केवल शरीर का नाश होता है।आत्मा अमर है।मृत्यु के बाद पुण्यकर्म साथ जाते हैं।
इस ग्रंथ में एक बड़ा दिलचस्प उदाहरण दिया गया है। रथ ( chariot) का उदाहरण! इसके अनुसार आत्मा रथी है अर्थात रथ का मालिक है। बुद्धि इस रथ का सारथी है। उसके हाथ में मन की लगाम है। इंद्रियों को घोड़े की संज्ञा दी गयी है। जिस तरह घोड़े को लगाम से नियंत्रित किया जाता है, उसी तरह मन को साधकर इन्द्रियों को नियंत्रित किया जा सकता है!
मित्रों, यह कमाल की बात है! आइये, एक सरल तरीके से समझें। अगर किसी चलती कार का ब्रेक फेल हो जाये तो क्या होगा! उसके पहिये अनियंत्रित हो जाएंगे। सारथी अर्थात चालक घबरा उठेगा। और उसमें सवार लोग? उनकी तो ऐसी की तैसी हो जाएगी!!
अब इस उदाहरण को कठोपनिषद से मिलाइये! अगर मन हमारे नियंत्रण में न हो तो इंद्रिया भी काबू से बाहर हो जाती हैं। मनुष्य अपनी अच्छी और बुरी इच्छाओं के अधीन होकर संसार का दास बन जाता है!
कठ की भाषा बड़ी ही रोचक, सटीक और दिल को छूनेवाली है। वो बिल्कुल सीधे ढंग से बात करते हैं। अगर आपको संस्कृत भाषा आती है तो आप इसका बहुत अच्छी तरह आनंद ले सकते हैं।वैसे दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में इसके अनुवाद आसानी से उपलब्ध हैं।
कठ ने दुनियाभर के विद्वानों को प्रभावित किया है। बौद्ध और जैन धर्मों के कुछ ग्रंथों पर भी इस दर्शन का प्रभाव दिखता है।
अब एक व्यक्तिगत बात! अगर कभी इसे पढ़ने का मौका मिले तो नचिकेता को एक किशोर बालक और यमराज को उसकी मृत्यु के स्थान पर रखकर देखिए। यम की आंखों में आंखें मिलाकर बात करते नचिकेता आपके मन के सारे डर दूर भगा देंगे।
मित्रों, आज यहीं तक। आपके अच्छे स्वास्थ्य एवं समृद्धि की कामना करता हूँ। धन्यवाद।
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