दोस्तों, आज हम भगीरथ के बारे में बात करेंगे। मान्यता है कि भगीरथ ही गंगा नदी को इस भारतभूमि पर लेकर आये थे। इस अप्रतिम कार्य को करने के कारण वह भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े नायकों में अपना स्थान रखते हैं।
आइये, आज इस लेख में हम संक्षिप्त रूप में भगीरथ के प्रयासों, कार्यों एवं उन घटनाओं की चर्चा करेंगे जिनके चलते गंगा नदी का इस भारतभूमि पर अवतरण हुआ। इस पौराणिक कथा में छिपे उन भौगोलिक और वैज्ञानिक तथ्यों की चर्चा भी हम करेंगे जो धार्मिक आस्था के पीछे छिपे होने के कारण अक्सर हमें नजर नहीं आते।
चलिए, शुरू करते हैं।
भगीरथ कोई आम इंसान नहीं थे। वह राजा थे।परम प्रतापी राजा दिलीप के पुत्र थे। भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली राज्यों में से एक अयोध्या के सम्राट थे।
लेकिन एक बात उन्हें हमेशा दुखी करती रहती थी। दरअसल, कई पीढ़ी पहले राजा सगर नाम के एक पूर्वज थे। उनके सगर नाम रखे जाने के पीछे एक कारण था। सगर का अर्थ होता है विष से भरा व्यक्ति। जब वे अपनी माता के गर्भ में थे तभी उन्हें विष देकर मारने का प्रयास हुआ था। उस समय महर्षि च्यवन ने सही चिकित्सा करके उनकी माता की रक्षा की थी। आगे जाकर जब सगर जन्मे, तो उनके पूरे शरीर में विष का प्रभाव आ चुका था। बड़े होकर वह अत्यंत दुस्साहसी राजा बने जिन्हें हर क्षण युद्ध में रहना ही पसंद था।
महाराज सगर की दो रानियां थीं, केशिनी और सुमति।इसमें सुमति का स्वभाव ठीक सगर की तरह था।केशिनी से सगर को असमंजस नामक एक पुत्र की प्राप्ति हुई। वहीं सुमति ने एक ऋषि की प्रेरणा से साठ हजार बालकों को गोद लेकर उन्हें अपने पुत्र का दर्जा दिया। ये साठ हजार बालक युद्ध कला की शिक्षा पाकर एक बहुत दक्ष और शक्तिशाली सैन्यदल के रूप में विकसित हुए।
सगर का सबसे बड़ा पुत्र युवराज असमंजस बहुत जिद्दी था। एक बार उसने युद्ध में कुछ बच्चों को मार डाला। उस समय के प्रचलित कानून के अनुसार उसे अपमानित करके देश से निकाल दिया गया। इसके बाद उसके पुत्र अंशुमान अयोध्या के युवराज बने जो प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे।
हमेशा युद्ध में ही रुचि रखने वाले सगर ने सारे विरोधी राजाओं को पराजित कर दिया। इसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यह यज्ञ एक तरह से चक्रवर्ती सम्राट बनने की घोषणा थी। इस यज्ञ में एक घोड़ा छोड़ा जाता था जो बारी बारी सभी राज्यों में जाता। जिस राज्य में घोड़ा घुस जाता, वहाँ के शासक को दो ही विकल्प मिलते। या तो अधीनता मान लो या फिर युद्ध करो। सगर से टक्कर लेने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई।घोड़ा अपनी मनमर्जी से दौड़ता रहा।
तभी एक विचित्र घटना घटी। घोड़ा गायब हो गया! सगर के साठ हजार पुत्रों की सेना क्रोध से पागल होकर उसे ढूंढने लगी। हजारों मील दूर कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा मिला।किसी ने चुपके से वहां छोड़ दिया था। सगर के पुत्रों ने आश्रम पर ही हमला कर दिया।
कपिल मुनि भी कोई साधारण साधु नहीं थे। दिव्यास्त्रों के जानकार थे। उनके अस्त्रों ने इन साठ हजार सैनिकों को जला दिया।
इस भीषण नरसंहार के बाद दोनों ही पक्षों की गलतफहमी दूर हो पाई। सगर को ऋषिवर्ग के सामने पराजय माननी पड़ी।
लेकिन महाराज सगर के सामने नई समस्या आन पड़ी। गाय,ब्राह्मणों एवम ऋषियों का संहार करनेवालों के लिए श्राद्ध करने का कोई प्रावधान ही नही था। यह ऐसा पाप था जिसकी सजा अनंतकाल तक चलती थी। ऐसे व्यक्तियों के लिए एक ही प्रावधान था कि उनके शरीर की भस्म को गंगा नदी में प्रवाहित किया जाए। ये गंगा नदी हिमालय में स्थित देवलोक में बताई जाती थी जिसे भारत के किसी निवासी ने देखा तक नहीं था।
जो भी हो, सगर ने संकल्प लिया।चाहे जैसे भी हो, गंगा का पता लगाकर उसे अपने राज्य तक लेकर आना है। जीवन भर प्रयास करने पर भी वह सफल नहीं हुए।
इसके बाद अंशुमान राजा बने। उनके जीवन काल में भी गंगा को लाने का प्रयत्न सफल नहीं हुआ। इसके बाद महाराज दिलीप ने भी जीतोड़ प्रयास किया। उनके सद्गुणों के चलते ऋषियों ने भी उनका साथ दिया। लेकिन इसी प्रयास में उनकी मृत्यु हो गयी।
अब भगीरथ राजा बने। उनके दिमाग में सदा यही संकल्प चलता-" गंगा को लाना है"। उन्होंने अपने पूर्वजों द्वारा किये गए सारे प्रयासों का विश्लेषण करके अपनी योजना बनाई। वो जानते थे कि कैलाश निवासी भगवान शिव के वरदान से ही वह ये कार्य कर सकेंगे। बहुत वर्षों की तपस्या के बाद शिव का वरदान उन्हें मिला।
देवताओं की नदी गंगा गोमुख से प्रकट हुई। ऐसा वर्णन आता है कि राजा भगीरथ अपना रथ लेकर आगे आगे चले और गंगा इनके पीछे चलीं। इसका अर्थ क्या है? कई शोधकर्ताओं का मानना है कि गंगा नदी का मार्ग मानवों द्वारा निर्मित है। इसका मार्ग मानवों द्वारा निर्धारित किया गया है।
यह कथा भी आती है कि राजा भगीरथ इसका मार्ग अपनी मर्जी से निर्धारित नहीं कर पाए। महर्षि जह्नु के सुझाये गए मार्ग पर उन्हें आगे बढ़ना पड़ा। इसके चलते गंगा का एक नाम जाह्नवी भी है।
भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अभिलाषा को पूरा किया। जब गंगा नदी सागर के पास पहुंची तो पूर्वजों की अस्थियां गंगा में विसर्जित की गयीं। यह परंपरा हम आज भी देखते हैं।
दोस्तों, एक बात ध्यान देने की है। गंगा को भागीरथी कहा जाता है। भागीरथी मतलब? भगीरथ की पुत्री। लेकिन ऐसा क्यों? भगीरथ ने तो देवनदी गंगा को अपनी मां कहकर स्तुति की थी। फिर भागीरथी नाम कैसे? असल में इसका कारण है। देवनदी गंगा को धरती पर लाना असंभव कार्य था। लेकिन भगीरथ ने इसे कर दिखाया! भगीरथ के इसी परिश्रम को सम्मानित करने के लिए देवताओं ने गंगा को भागीरथी अर्थात भगीरथ की पुत्री कहा।
अब एक और बात। गंगा का निवास तो कैलासवासी भगवान शिव की जटाओं में कहा जाता है। इस वजह से इसका एक नाम जटाशंकरी भी है। लेकिन कैलाश पर्वत तो गोमुख से काफी दूर है! फिर गंगा वहां से गोमुख तक कैसे लायी गयी?
मित्रों,यही वो असंभव कार्य था, जिसके लिए अयोध्या के राजागण पीढ़ी दर पीढ़ी प्रयासरत रहे थे! लेकिन सफलता तभी मिली जब भगीरथ को कैलाश के अधिपति भगवान शंकर का वरदान मिला! इस दिशा में कोई प्रामाणिक अध्ययन तो नहीं है, पर अनेक विद्वानों का मानना है कि गंगा हिमालय के अंदर ही अंदर काफी दूरी तयकर गोमुख से प्रकट होती है।
अब एक प्रश्न लेते हैं। गंगा देवनदी क्यों है? इसलिए क्योंकि इसका जल विशिष्ट है। आप किसी अन्य नदी जैसे यमुना, गंडक, कृष्णा, गोदावरी आदि का पानी लेकर रखें तो कुछ समय के बाद यह खराब हो जाएगा। लेकिन आप गोमुख से गंगाजल लेकर रखें तो यह सालों तक जस का तस रहेगा। यह विशेषता दुनिया के किसी और जल में नहीं मिलती।
भारतीय संस्कृति में गंगा केवल एक नदी नहीं है। यह आस्था का एक जीवंत प्रतीक है जो कई राज्यों, बहुत सारे जनपदों एवं अनगिनत लोगों को एक सूत्र में बांधती है। करोड़ों लोग इसे गंगा मैया या गंगा मां कहकर स्मरण करते हैं।
अब कुछ आधुनिक युग के तथ्य लेते हैं। हमारे देश में कई विभूतियां ऐसी हुयीं जिन्होनें भगीरथ से प्रेरणा लेकर अपने क्षेत्रों में नदियों का विकास एवं संरक्षण किया। इनमें एक बहुत प्रेरक उदाहरण राजस्थान के क्षेत्र बीकानेर के राजा गंगासिंह का है। उनके राज्य में पानी की बहुत कमी थी। उन्होंने सतलज नदी से नहर के द्वारा पानी अपने राज्यक्षेत्र तक पहुँचा दिया। इस महान कार्य के चलते उन्हें मारवाड़ का भगीरथ कहा गया। मदन मोहन मालवीय जी ने गंगा महासभा की स्थापना की जिससे जुड़कर हजारों लोग गंगा संरक्षण के लिए प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। नमामि गंगे आदि सरकारी योजनाएं भी कार्यरत हैं। स्वामी सानंद जैसे लोगों ने भी इस दिशा में बहुत गहन शोध किये।
अंत में एक बड़ी बात। आज गंगा काफी प्रदूषित हो चुकी है।कानपुर से इलाहाबाद के बीच विशेष तौर पर। इसे प्रदूषित किसने किया? हमारी उदासीनता ने। इसे फिर से निर्मल कैसे किया जा सकता है? हमारी रुचि और उत्साह से। आइये, भगीरथ को नमन करते हुए हम भी संकल्पित हों- जहां तक बन पड़ेगा, हम गंगा को फिर से निर्मल बनाने हेतु अपना योगदान देंगे।
दोस्तों, लेख लंबा हो रहा है।आज यहीं तक।अगले लेख में फिर मिलेंगे।आपकी अपनी इसी वेबसाइट पर।धन्यवाद।
accha post hain
ReplyDeleteDhanyavad sanjay ji
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