1928।बारदोली।गुजरात। वहां किसान बड़े परेशान थे।अंग्रेज़ों ने लगान 30 प्रतिशत कर दिया था।उपज हो नहीं रही थी। फिर लगान कहाँ से देते! इसके खिलाफ आंदोलन भी किया।लेकिन कोई असर नहीं।अंग्रेज़ों ने इसे कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए।हजारों को कैद कर लिया।
लेकिन एक व्यक्ति बड़े संतुलित दिमाग से ये देख रहा था।समझ रहा था-किसानों पर अत्याचार और अंग्रेजों की कूटनीति।किसान इस वजह से शोषित हो रहे थे क्योंकि उनके पास ठोस, सुनियोजित योजना नहीं थी।उसने महसूस किया- अब ये अत्याचार समाप्त होना ही चाहिए।
अब इतिहास बदलने वाला था।उसने संघर्ष को एक planned approach दिया। कौन कब नेतृत्व करेगा।कौन सत्याग्रह,धरने पर कहाँ बैठेगा।कौन मीडिया मैनेजमेंट करेगा।कौन संसाधन जुटाएगा।ये सबकुछ उसके विलक्षण दिमाग ने निर्धारित कर लिया।और सबसे बड़ी बात-उसने महिलाओं को सक्रिय भूमिका में जोड़ लिया। किसानों के इस संघर्ष को उसने जनता का संघर्ष बना दिया।परिणाम? इस सत्याग्रह ने ऐसी रफ्तार पकड़ी की देश विदेश के बड़े नेताओं का ध्यान इसी तरफ खिंच गया।अंग्रेज़ अधिकारी रातों रात सुधर गए! 30 प्रतिशत लगान घटकर 6 प्रतिशत हो गया!महात्मा गांधी भी बड़े प्रभावित हुए।इस पूरे आंदोलन के नायक को जनता ने सरदार की उपाधि दी।सरदार पटेल।सरदार वल्लभभाई पटेल। गांधीजी सहित कांग्रेस के बड़े नेताओं एवं अंग्रेजी सरकार ने उसी समय भांप लिया था कि ये केवल गुजरात के नहीं बल्कि पूरे भारत के सरदार साबित होंगे!
आगे जाकर अंग्रेज़ों की आशंका सच हुई।सरदार ने गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।असहयोग आंदोलन।दांडी मार्च। भारत छोड़ो आंदोलन।सरदार पटेल हर जगह नींव का पत्थर बने।उनकी योजनाओं का केंद्र बिंदु एक ही होता था- आम आदमी।उन्होंने कभी भी अपने अथक परिश्रम का श्रेय नहीं लिया।हमेशा कर्मयोगी की तरह राष्ट्रसेवा में लगे रहे।
वे भारत के सर्वप्रथम नेताओं में थे जिन्होंने वैज्ञानिक एवं संगठित तरीके से किसानों की दशा सुधारने के प्रयास किये।
किसानों का संघ या कोऑपरेटिव बनाने की सोची। आज अमूल का नाम सब जानते है। अमूल दूध,घी,बटर यही बनाती है। इसकी स्थापना के पीछे सरदार पटेल की प्रेरणा ही थी!सरदार की बनाई योजनाएं ये सुनिश्चित करती थीं की उपज का पूरा लाभ सीधे किसान को ही मिले। आज के सत्तर साल पहले ऐसी दूरदर्शिता!है न कमाल की बात।
वो लंदन से पढ़े थे।बैरिस्टर थे।भारत में विख्यात। बेहिसाब आमदनी।गजब की तर्कशक्ति।अंग्रेज़ जज भी इनका बहुत सम्मान करते थे।एक बार एक आदमी को फांसी होनेवाली थी।सरदार जानते थे- वो निर्दोष है। लेकिन सारे गवाह उसके खिलाफ थे।उस दिन फैसला आने का chance था। बचने का एक ही रास्ता था- जज के सामने साबित किया जाए कि गवाह झूठ बोल रहे हैं। बहस के बीच ही उन्हें सूचना मिली कि उनकी पत्नी अब नहीं रही।लेकिन उनकी बहस धीमी नहीं पड़ी। गवाह इनके आगे टिक नहीं पाए।वो व्यक्ति बच गया।
कामयाबी के शिखर पर बैठे वल्लभभाई ने देश के लिए सर्वस्व अर्पण किया।आम जनता के बीच रहे। पूरे देश मे घूमे।जनता में राष्ट्रवादी भावना जगाई।
लेकिन असली काम तो आज़ादी मिलने के बाद शुरू होना था! अंग्रेज बड़े चालाक थे।सबको आज़ादी दे गए थे।भारत को।पाकिस्तान को।और?साढ़े पाँच सौ से ज्यादा रियासतों को!इनको एक सूत्र में बांधना असंभव था।आधुनिक इतिहास में ऐसा केवल जर्मनी में ही हुआ था।बिस्मार्क के द्वारा।लेकिन वहां तो 25 राज्यों को ही एक करना था!यहाँ तो साढ़े पांच सौ से भी ज्यादा राज्य थे।समय भी बहुत कम था।
लेकिन सरदार ने इस असंभव को भी संभव कर दिया।उन्होंने रात-दिन एक कर दिया।उन्होनें कैसे इन राज्यों और राजाओं को समझाया, इसपर अनेक किताबें लिखी जा चुकी हैं। सारांश के तौर पर कहा जा सकता है।जो काम 5 लाख सैनिकों की सेना पंद्रह सालों में नहीं कर पाती-वह सरदार ने पांच-छह महीनों में ही कर दिखाया।गांधीजी को कहना पड़ा-ये काम केवल तुम ही कर सकते थे।
सरदार पटेल को देश की जनता ने लौह पुरुष कहकर सम्मान दिया।1991 में इन्हें भारत रत्न दिया गया।
लेकिन हम जानते हैं- सरदार का कद सारे सम्मानों से ऊंचा है।पिछले 31 अक्टूबर को उनकी मूर्ति गुजरात में लगाई गई।ये दुनिया में सबसे ऊंची है।ये इस बात को दर्शाता है कि वो आज भी जनता के हृदय में हैं।
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